अमर सिंह राठौड़ का जन्म 12 दिसंबर 1626 ईण् को हुआ था। इनके पिता का नाम गज सिंह प्रथम जो मारवाड़ रियासत के महाराज थे। अमर सिंह बचपन से ही स्वाभिमानी, निडर और चंचल प्रवृत्ति के थे। इन्हे किसी दूसरे का हस्तक्षेप तनिक भी पसंद नहीं था। महाराज गजसिंह ने मुगलों से एक डाकू को बचाने के कारण अमर सिंह को राज्य से निर्वासित कर दिया था। इसके बाद अमर सिंह राठौड़ ने मुगल दरबार की ओर रूख किया। शाहजहां ने अमर सिंह को नागौर का सूबेदार नियुक्त कर जागीर में 5 परगने और डेढ़ हजार का मनसबदार भी नियुक्त कर दिया। कालान्तर में नागौर के सबूदार अमर सिंह ने फिरचराई कर देने से इन्कार कर दिया। इस वजह से बादशाह शाहजहां के मन में इस बात को लेकर नाराजगी थी लेकिन वह अमर सिंह के स्वाभिमानी स्वभाव और वीरता से पूर्ण परिचित था। अमर सिंह को यह बात भलीभांति पता थी कि दरबार मे उनके विरुद्ध कान भरे जाते है, इसलिए बादशाह की नाराजगी दूर करने हेतु वह दरबार में स्वयं पेश हुए।फिचराई कर नहीं देना तो एक बहाना मात्र था, सलाबत खान ने अमर सिंह को भरे दरबार में अपमानित करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं उसने सभी मुगल मनसबदारों के समक्ष अमर सिंह को गंवार कह दिया। फिर क्या था, अमर सिंह ने अपनी तलवार निकाली और भरे दरबार में सलाबत खान का सिर धड़ से अलग कर दिया। कहते हैं मुगल बादशाह शाहजहां यह दृश्य देखते ही डरकर महल के अन्दर भाग गया। इस पर पूरी मुगल सेना ने उन्हें आगरे के किले में कैद करने की कोशिश की। परंतु अमर सिंह अपने घोड़े पर सवार होकर किले की दीवार से कूद गए। घोड़े की वहीं मौत हो गई लेकिन अमर सिंह सुरक्षित निकल गए। बादशाह शाहजहां ने अमर सिंह को पकड़ने की जिम्मेदारी उनके साले अर्जुन सिंह को दी। अर्जुन सिंह ने धोखा देकर साजिश के तहत अमर सिंह को किले में लेकर आया। वहां अर्जुन सिंह ने मुगल सैनिकों के साथ मिलकर उनकी हत्या कर दी।
दोस्तों, आज हम इस स्टोरी में एक ऐसे राजपूत योद्धा के बारे में बताने जा रहे हैं जो अद्भूत वीर भूमि मारवाड़ राजघराने से ताल्लुकात रखता था। दरअसल मारवाड़ संस्कृत भाषा के मरूवाट शब्द से बना है, जिसका तात्पर्य है- मौत का भूभाग। अब आप नाम से ही समझ गए होंगे कि इस मारवाड़ रियासत ने एक दो नहीं बल्कि असंख्य वीर योद्धाओं को जन्म दिया। इन्हीं वीर सपूतों में से एक योद्धा का नाम है अमर सिंह राठौड़।
अमर सिंह राठौड़ का जन्म 12 दिसंबर 1626 ई. को हुआ था। इनके पिता का नाम गज सिंह प्रथम जो मारवाड़ रियासत के महाराज थे। अमर सिंह बचपन से ही स्वाभिमानी, निडर और चंचल प्रवृत्ति के थे। इन्हे किसी दूसरे का हस्तक्षेप तनिक भी पसंद नहीं था, चाहे वो कोई अपना ही क्यों ना हो। इसीलिए अमर सिंह राठौड़ के पिता गज सिंह ने इनसे कुंठित होकर छोटे पुत्र जसवन्त सिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
मारवाड़ रियासत का हर शख्स अमर सिंह की देशभक्ति और उनकी वीरता से परिचित था। बावजूद इसके उनके पिता महाराज गजसिंह ने मुगलों से एक डाकू को बचाने के कारण अमर सिंह को राज्य से निर्वासित कर दिया था।
इसके बाद अमर सिंह राठौड़ ने मुगल दरबार की ओर रूख किया। अमर सिंह के वीरता और बहादुरी के किस्सों से मुगल बादशाह शाहजहां भी अवगत था। ऐसे में शाहजहां ने अमर सिंह को नागौर का सूबेदार नियुक्त कर जागीर में 5 परगने और डेढ़ हजार का मनसबदार भी नियुक्त कर दिया।
मुगल साम्राज्य की तरफ 1640-1641 में पंजाब विद्रोह का दमन करने के बाद अमरसिंह के वीरता के चर्चे पूरे देश में फैल गए। मारवाड़ के पड़ोसी राज्य बीकानेर पर विजयश्री हासिल करने के बाद मुगल दरबार में अमर सिंह का कद काफी बढ़ गया।
अपनी तलवार पर भरोसा करने वाले अमर सिंह अपनी असाधारण इच्छा शक्ति, दृढ़ निश्चय और स्वतंत्रता प्रेमी के रूप में अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करते रहे। उन्हें कोई लालच और डर कभी अपनी बात से डिगा ना सका। ऐसे में कई मुगल दरबारी ईर्ष्यावश मुगल बादशाह शाहजहां के कान भरने लगे। इन्हीं षड्यंत्रकारियों में से एक शाहजहां का साला सलाबत खान भी था। कहते हैं पूर्व में हुए किसी विवाद में सलाबत का बेटा अमर सिंह के हाथों मारा गया था, ऐसे में सलाबत खान उनसे बदला लेने का मौका ढूढ़ रहा था।
बता दें कि मीर बख्शी सलाबत खान को मुगल दरबार में 4000 का मनसब मिला हुआ था। गौरतलब है कि मुगलकाल में सभी रियासतों को हाथी चराई का कर देना पड़ता था, जिसे फिरचराई कहा जाता था। लेकिन नागौर के सबूदार अमर सिंह ने फिरचराई कर देने से इन्कार कर दिया। इस वजह से बादशाह शाहजहां के मन में इस बात को लेकर नाराजगी थी लेकिन वह अमर सिंह के स्वाभिमानी स्वभाव और वीरता से पूर्ण परिचित था। अमर सिंह को यह बात भलीभांति पता थी कि दरबार मे उनके विरुद्ध कान भरे जाते है, इसलिए बादशाह की नाराजगी दूर करने हेतु वह दरबार में स्वयं पेश हुए।
फिचराई कर नहीं देना तो एक बहाना मात्र था, सलाबत खान ने अमर सिंह को भरे दरबार में अपमानित करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं उसने सभी मुगल मनसबदारों के समक्ष अमर सिंह को गंवार कह दिया। फिर क्या था, अमर सिंह ने अपनी तलवार निकाली और भरे दरबार में सलाबत खान का सिर धड़ से अलग कर दिया। कहते हैं मुगल बादशाह शाहजहां यह दृश्य देखते ही डरकर महल के अन्दर भाग गया। अमर सिंह ने क्रोधित होकर मुगल सैनिकों में रक्तपात मचाना शुरू कर दिया। इस पर पूरी मुगल सेना ने उन्हें आगरे के किले में कैद करने की कोशिश की। परंतु अमर सिंह अपने घोड़े पर सवार होकर किले की दीवार से कूद गए। घोड़े की वहीं मौत हो गई लेकिन अमर सिंह सुरक्षित निकल गए।
बादशाह शाहजहां ने अमर सिंह को पकड़ने की जिम्मेदारी उनके साले अर्जुन सिंह को दी। अर्जुन सिंह ने धोखा देकर साजिश के तहत अमर सिंह को किले में लेकर आया। वहां अर्जुन सिंह ने मुगल सैनिकों के साथ मिलकर उनकी हत्या कर दी। आगर के जिस प्रवेशद्वार पर अमर सिंह की हत्या हुई आज भी उसे अमर सिंह गेट के नाम से जाना जाता है।
फ़िल्म निर्देशक राधाकांत ने साल 1970 में अमर सिंह राठौड़ के जीवन पर आधारित एक फ़िल्म भी बनाई थी। इस फिल्म का नाम है- ‘वीर अमरसिंह राठौड़’। यह फ़िल्म ब्लैक एंड व्हाइट प्रिंट में थी। 2 घंटे 10 मिनट की अवधि वाली इस फिल्म में कुमकुम, जेबरहमान, कमल कपूर, जीवन, रामायण तिवारी और रत्नमाला आदि ने मुख्य भूमिका निभाई है।