आखिर इंदिरा गांधी ने अमिताभ के तकिए के नीचे क्यों दबा रखी थी ताबीज?

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    वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई अपनी पुस्तक नेता अभिनेता : बॉलीवुड स्टार पावर इन इंडियन पॉलिटिक्स में लिखते हैं कि दोनों परिवारों के बीच दोस्ती की शुरूआत इलाहाबाद वाले घर आनन्द भवन से हुई। उन दिनों पं. जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे और उनके विदेश मंत्रालय में हरिवंश राय बच्चन हिंदी अधिकारी के पद पर कार्यरत थे। इसी वजह से इंदिरा गांधी और हरिवंश राय बच्चन की पत्नी तेजी राय बच्चन के बीच दोस्ती प्रगाढ़ होती चली गई। राजीव और अमिताभ के बीच दोस्ती का यह आलम यह था कि जब राजीव पढ़ने के लिए इंग्लैंड चले गए फिर भी वो अमिताभ को चिट्ठीयां लिखा करते थे।कहते हैं इंदिरा गांधी के दिल में अमिताभ बच्चन के लिए सगे बेटों जैसा ही प्रेम था। शायद इसीलिए अमिताभ बच्चन गमगीन अवस्था में चुपचाप पूरे टाइम इंदिराजी के मृत देह के पास खड़े रहे थे। 1983 की सुपरहिट फिल्म कूली की शूटिंग के दौरान जब पुनित इस्सर के मुक्के से घायल होकर अमिताभ बच्चन मरणासन्न स्थिति में पहुंच गए थे। तब देश की प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी ने मुम्बई के ब्रिच कैंडी अस्पताल पहुंचकर अमिताभ से मुलाकात भी की थी।

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    दोस्तों, बच्चन व गांधी-नेहरू परिवार की दोस्ती जगजाहिर रह चुकी है। वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई अपनी पुस्तक नेता अभिनेता : बॉलीवुड स्टार पावर इन इंडियन पॉलिटिक्स में लिखते हैं कि दोनों परिवारों के बीच दोस्ती की शुरूआत इलाहाबाद वाले घर आनन्द भवन से हुई।

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    उन दिनों पं. जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे और उनके विदेश मंत्रालय में हरिवंश राय बच्चन हिंदी अधिकारी के पद पर कार्यरत थे। इसी वजह से इंदिरा गांधी और हरिवंश राय बच्चन की पत्नी तेजी राय बच्चन के बीच दोस्ती प्रगाढ़ होती चली गई। उन दिनों अमिताभ और उनके भाई अजिताभ नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में पढ़ते थे जबकि राजीव और संजय गांधी दून स्कूल में पढ़ते थे। छुट्टियां मिलते ही सभी मिलकर एक साथ खूब मस्ती करते थे। ऐसे में ज्यादा वक्त बिताने के चलते इस परिवार की दोस्ती बहुत ज्यादा बढ़ती चली गई।

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    राजीव और अमिताभ के बीच दोस्ती का यह आलम यह था कि जब राजीव पढ़ने के लिए इंग्लैंड चले गए फिर भी वो अमिताभ को चिट्ठीयां लिखा करते थे। इतना ही नहीं जब राजीव गांधी इंग्लैंड से वापस लौटे तो अमिताभ बच्चन के लिए जींस लेकर आए थे। अमिताभ को यह जींस इतनी पसंन्द आई कि वे उसे सालों तक पहनते रहे।

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    कहते हैं इंदिरा गांधी के दिल में अमिताभ बच्चन के लिए सगे बेटों जैसा ही प्रेम था। शायद इसीलिए अमिताभ बच्चन गमगीन अवस्था में चुपचाप पूरे टाइम इंदिराजी के मृत देह के पास खड़े रहे थे। कहते हैं अमिताभ बच्चन को इंदिरा गांधी अपना तीसरा बेटा मानती थीं।

    मशहूर फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास ने कहा था कि इंदिरा गांधी की चिट्ठी की बदौलत अमिताभ बच्चन को सात हिंदुस्तानी फिल्म में काम दिलवाया गया था। अब्बास कहते हैं कि मेरे कम अनुभवी दिमाग में यह सवाल बार-बार उठता है, आखिर भारत के सर्वोच्च स्थान पर बैठा कोई व्यक्ति इस युवक के लिए चिट्ठी क्यों लिखेगा?

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    वहीं रशीद किदवई भी अपनी किताब में लिखते हैं कि आखिर कैसे इंदिरा गांधी ने सीधे नरगिस और सुनील दत्त से बात की और उनके होम प्रोडक्शन मूवी रेशमा और शेरा में अमिताभ बच्चन को काम मिला। इतना ही नहीं इंदिरा गांधी ने अमित बच्चन का ख्याल हमेशा अपने बच्चों की तरह ही रखा।

    1983 की सुपरहिट फिल्म कूली की शूटिंग के दौरान जब पुनित इस्सर के मुक्के से घायल होकर अमिताभ बच्चन मरणासन्न स्थिति में पहुंच गए थे। उन दिनों ऑल इंडिया रेडियो पर अमिताभ बच्चन के स्वास्थ्य समाचार प्रसारित किए गए थे। इतना ही नहीं, तब देश की प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी ने मुम्बई के ब्रिच कैंडी अस्पताल पहुंचकर अमिताभ से मुलाकात भी की थी।

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    आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि श्रीमती गांधी ने अमिताभ के लिए अपने पारिवारिक पंडित से कहकर खास पूजा-अर्चना भी करवाई थी। इतना ही नहीं देवरहा बाबा से सफेद कपड़े में लिपटा एक ताबीज भी मंगाया। यह ताबीज 10 दिनों तक अमिताभ बच्चन के तकिए के नीचे रखा। इसी बीच अमिताभ की तबीयत में सुधार हुआ और स्वस्थ होने के बाद देवरहा बाबा में उनका विश्वास भी बढ़ गया। हांलाकि अमिताभ धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगे और दोनों परिवारों के बीच की दूरियां मिटती गईं। दोस्तों यह बात दशकों पुरानी है, अब कालचक्र घूम चुका है। अमिताभ बच्चन के अनुसार… अब तो वे राजा है और हम प्रजा हैं।

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