बनारसीपानऔरलंगड़ाआमकोमिला GI टैग…आइएजानतेहैंइसकेफायदे? 

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बनारसी पान और लंगड़ा आम को मिला GI टैग…आइए जानते हैं इसके फायदे?

बनारस की बात हो और उसमें बनारसी पान ना हो तो बात अधूरी रह जाती है और आम में लंगड़ा आम की बात ही कुछ और है…कहावत है कि अगर बनारस जाएं और बनारसी पान नहीं खाएं तो फिर यात्रा अधूरी रह जाएगी…वैसे ये पान जीभ पर आने के बाद अपनी नफासत और लजीज जायके का वो अंदाज दिखाता है कि आनंद ही आ जाता है….बनारसी पान भी अब कई अलग अलग विशेषताओं के साथ बनारस की अलग-अलग दुकानों पर मिलते हैं…बनारस के इसी जायके को लंगड़ा आम और आगे बढ़ाता है…काशी की शान में चार चांद लगाने वाली ये दोनों चीजें इस साल GI टैग में शामिल की गई हैं…आज हम आपको अपने इस वीडियो में बताएंगे कि GI टैग क्या होता है और जब ये किसी प्रॉडक्ट को मिलता है तो क्या फायदा होता है…

आपको बता दें कि GI टैग में बनारस की कई चीजें पहले से ही शामिल हैं जिसमें बनारसी साड़ी, लकड़ी के खास खिलौने, गुलाबी मीनाकारी समेत कुल मिलाकर 22 सामान हैं…ये सामान बनारस और उसके आस-पास चुनार, मिर्जापुर और गाजीपुर से जुडे़ हुए हैं…बनारसी पान और लंगड़ा आम को भी इसी कैटेगरी में शामिल करते हुए उसे GI टैग से नवाजा गया है…जिसके बाद से ही उसकी हैसियत बढ़ गई है…

GI टैग किसी भी उत्पाद या सामान को उसका सही पता बताता है…GI टैग यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग को भारतीय संसद ने 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स’ लागू किया था. इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जाता है. बनारसी साड़ी, मैसूर सिल्क, कोल्हापुरी चप्पल, दार्जिलिंग चाय इसी कानून के तहत संरक्षित हैं…जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग्स का काम उस खास भौगोलिक परिस्थिति में पाई जाने वाली वस्तुओं के दूसरे स्थानों पर गैर-कानूनी प्रयोग को रोकना है.

किसी भी वस्तु को GI टैग देने से पहले उसकी गुणवत्ता, क्वालिटी और पैदावार की अच्छे से जांच की जाती है. यह तय किया जाता है कि उस खास वस्तु की सबसे अधिक और ओरिजिनल पैदावार निर्धारित राज्य की ही है. इसके साथ ही यह भी तय किए जाना जरूरी होता है कि भौगोलिक स्थिति का उस वस्तु की पैदावार में कितना हाथ है. कई बार किसी खास वस्तु की पैदावार एक विशेष स्थान पर ही संभव होती है. इसके लिए वहां की जलवायु से लेकर उसे आखिरी स्वरूप देने वाले कारीगरों तक का हाथ होता है. 

GI टैग मिलने के बाद अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में उस वस्तु की कीमत और उसका महत्व बढ़ जाता है. इस वजह से इसका एक्सपोर्ट बढ़ जाता है. साथ ही देश-विदेश से लोग एक खास जगह पर उस विशिष्ट सामान को खरीदने आते हैं. इस कारण टूरिज्म भी बढ़ता है. किसी भी राज्य में ये विशिष्ट वस्तुएं उगाने या बनाने वाले किसान और कारीगर गरीबी की रेखा के नीचे आते हैं. GI टैग मिल जाने से बढ़ी हुई एक्सपोर्ट और टूरिज्म की संभावनाएं इन किसानों और कारीगरों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाती हैं.

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