women’s empowerment की अद्वितीय मिसाल
S D M ज्योति मौर्या केस की चर्चा वैसे तो काफी दिनों से हो रही है , पर हमारा ध्यान उस केस में कम और इस मामले के ऊपर लोगों ने जो अपने विचार प्रगट किये है उसपे ज़्यादा है। यहाँ women’s empowerment के समर्थकों और विरोधियों की जमकर बहस हुई। वैसे तो अवैध सम्बन्ध चाहे स्त्री रखे या पुरुष हर हाल में गलत ही है। यहाँजो आश्चर्यचकित करता है वो कुछ लोगो का यह कहना है की यदि अवैध सम्बन्ध एक पुरुष रख सकता है, तो स्त्री का इस प्रकार से अपने पति को धोखा देना कोई बड़ी बात नहीं है।
आज स्त्री सशक्तिकरण की परिभाषा धुंधली सी पड़ गयी है।
- शराब,, सिगरेट पीना ।
- अश्लीलता का प्रदर्शन ।
- गालिया देना ।
- अनेक साथियों के साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करना ।
- विवाह जैसी पवित्र परंपरा का अपमान करना ।
यह सारी बातें आजकल गुण दोष न होकर women’s empowerment और स्वतंत्रता का प्रतीक बन बैठी है।
ऐसे में ज़रूरी है की हम एक बार फिर इतिहास में झाके और समझे की शशक्तिकरण का वास्तविक अर्थ स्वतंत्रता की मांग करने में या स्वतन्त्र की भीख मांगने में नहीं है। फेमिनिज्म का मतलब है उस स्वंत्रता के लिए किसी भी पुरुष से अधिक सहस दिखाके लड़ना, खुदको इस लड़ाई के काबिल बनाने के लिए संघर्ष करना।
यह सीखने के लिए हमें किसी पश्चिमी देश की और देखने की ज़रुरत नहीं है। हमारे अपने देश के इतिहास में बहुत से ऐसे उदाहरण मौजूद है जो वाकई में women’s empowerment की परिभाषा को सार्थक करते है। तो आइये देखते है ऐसी तीन वीरांगनाओं के बारे में जो अपनी और अपने लोगों की सुरक्षा और प्रगति के लिए किसी भी पुरुष पर निर्भर नहीं रही।
१) रानी दुर्गावती
अकबर जैसी सल्तनत से ३ बार लोहा लेने वाली रानी दुर्गावती, आज भी वीरता की अद्वितीय मिसाल है। गोंडवाना राज्य की महारानी रानी दुर्गावती ने राज्य का भार तब संभाला, जब उनके पति गोंडवाना के राजा राणा दलपत शाह की मृत्यु हो गयी। इस नाज़ुक वक्त का फायदा उठाते हुए अकबर ने रानी दुर्गावती को आत्मसमपर्पण करने की धमकी दी, जिसका जवाब उनहोने सिंगोलगढ़ के युद्ध के रूप में दिया। यहाँ उन्होंने मुगलों को लोहे के चने चबा दिए। एक बार नहीं बल्कि ३, ३ बार मुगलों को धूल चटाने वाली रानी दुर्गावती के सम्मान में आज भी २४ जुन् को बलिदान दिवस मनाया जाता है।
२) नाइकी देवी
गोवा के कदम्ब राजा महामंडलेश्वर की पुत्री नाइकी देवी के बारे शायद ही आज कोई जानते हो। गुजरात के सोलंकी वंश के अजयपाल सिंह के साथ उनका विवाह हुआ। विवाह के चार साल बाद ही उन्होंने अपने पति को गंवा दिया जिसके पश्चात उन्होंने ने अपने बेटे को अनिलहवारा के सिंहासन पर बिठाया और खुद उनके प्रतिशशाक़ के रूप में राजमाता का कर्त्तव्य निभाती रही। उसी समय मोहमद घोरी जैसे क्रूर शासक की नज़र अनिलहवारा पे पड़ी । शायद उसे लगा हो की एक विधवा और उसके अल्पायु पुत्र पर विजय प्राप्त करना कितना ही मुश्किल होगा। अपने इस मद में चूर उन्होंने रानी को एक संदेशा भिजवाया जिसमें लिखा था की की वह गुजरात पर हमला नहीं करेगा, यदि नाइकी देवी अपने पुत्र समेत आत्मसमर्पण कर दे और अपने राज्य का सारा धन एवं महिलाओं को उसके हवाले कर दे। आत्मसम्मान और आत्मविश्वास से भरपूर रानी ने इस सन्देश के बदले राजस्थान के ( तब काशारदा) सिरोही में युद्ध का आह्वान भिजवाया, इतना ही नहीं अपनी कुशल राजनीति और साहस के दम पर मोहम्मद घोरी को अपने बचे कूचे सिपाहियों के साथ भागने पर मजबूर भी किया। कहते है की अपनी इस हार से मोहमद घोरी इतना शर्मसार था की उसने फिर कभी अहिरवार की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखा।
३ ) ताराबाई
छत्रपती शिवाजी महाराज की पुत्रवधू और राजाराम भोसले की पत्नी ताराबाई ,इतिहास में अपनी एक खास पहचान लिख चुकी है। अपने पति और पुत्र के निधन के बाद उन्होंने अपने पोते शिवाजी द्वितीय को राजगद्दी पर बिठाया और प्रतिनिधि बनकर राज्य का कार्यभार संभाला। उनके इस कठिन समय का फायदा औरंगज़ेब ने उठाना चाहा पर ताराबाई ने युद्ध भमि में उसे मुँह तोड़ जवाब देकर अपनी वीरता का प्रमाण दिया। एक वक्त ऐसा भी आया जब वह मुगलों द्वारा बंदी बना ली गयी थी। परन्तु चार दिन के अंदर ही अंदर वह मुगलों के चंगुल से भाग निकली और फिर से मराठों का नेतृत्व किया। कहते है उनके रहते औरंगज़ेब आखरी सास मराठाओ को हराने के सपने को पूरा नहीं कर पाया था।
तो यह थी असली फेमिनिस्ट जिन्होंने महिलाओं खिलाफ उठने वाली हर आवाज़ का न सिर्फ सामना किया बल्कि उनसे सम्मान भी हासिल किया।
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