ताइवान का मुद्दा वर्तमान में विश्व राजनीति के सबसे जटिल और संवेदनशील विषयों में से एक है। यह एक ऐसी कहानी है जो इतिहास, भू-राजनीति, और वैश्विक स्थिरता के ताने-बाने में गहरी जड़ें रखती है। क्या China , बिना एक भी गोली चलाए, ताइवान को अपने अधीन कर सकता है? क्या विश्व समुदाय इस उभरते संकट का सामना कर सकेगा, या यह एक और वैश्विक संघर्ष का कारण बनेगा? आइए, इस जटिल परिदृश्य को गहराई से समझें और इसके संभावित परिणामों का विश्लेषण करें।-Taiwan Issue update
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ताइवान और China के बीच का संबंध हमेशा से ही तनावपूर्ण रहा है। ताइवान, जिसे आधिकारिक रूप से ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ कहा जाता है, एक स्व-शासित द्वीप है, जिसे चीन अपनी भूमि का हिस्सा मानता है। China के नेता शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन की आक्रामक नीति और रूस के यूक्रेन पर आक्रमण की निंदा करने से इनकार ने वैश्विक स्तर पर चिंताओं को बढ़ा दिया है। China के पास ताइवान को नियंत्रित करने के तीन मुख्य विकल्प हैं: पूर्ण पैमाने पर आक्रमण, सैन्य नाकेबंदी, या “क्वारंटाइन” रणनीति।-Taiwan Issue update
ऐसे में वाशिंगटन स्थित सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के अनुसार, China “ग्रे ज़ोन” रणनीति का उपयोग कर सकता है, जो युद्ध के स्तर से नीचे की कार्रवाइयाँ होती हैं। इसमें China कोस्ट गार्ड, समुद्री मिलिशिया और विभिन्न पुलिस और समुद्री सुरक्षा एजेंसियों द्वारा ताइवान के बंदरगाहों और आवश्यक आपूर्ति को काटना शामिल हो सकता है। इस रणनीति के तहत, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी केवल सहायक और समर्थन भूमिकाएँ निभा सकती है।
आपको बता दे कि सितंबर 2020 से, China ने ताइवान पर दबाव बढ़ा दिया है, जिससे आशंका है कि यह तनाव सीधे संघर्ष में बदल सकता है। China की रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जून ने ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन करने वाली “बाहरी ताकतों” को चेतावनी दी है और कहा है कि ताइवान को अलग करने का प्रयास करने वाला कोई भी “स्वयं को नष्ट कर लेगा।” उन्होंने डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी पर ताइवान की China पहचान को मिटाने का आरोप लगाया है।-Taiwan Issue update
अब China ने ताइवान के पास अपने सैन्य विमानों और नौसैनिक जहाजों की संख्या बढ़ा दी है। ताइवान के रक्षा मंत्रालय के अनुसार, ये ग्रे ज़ोन रणनीति “प्रयास या प्रयासों की एक श्रृंखला है जो सीधे और बड़े पैमाने पर बल के उपयोग के बिना अपने सुरक्षा उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करती है।”
वैसे चीन और ताइवान के बीच का विवाद केवल क्षेत्रीय विवाद नहीं है, बल्कि यह विश्व शक्ति संतुलन और वैश्विक स्थिरता पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। इस विवाद की जड़ें 1949 में चीनी गृहयुद्ध में हैं, जब China कम्युनिस्ट पार्टी ने मुख्य भूमि चीन पर नियंत्रण कर लिया और राष्ट्रवादी सरकार ताइवान भाग गई। तब से, China ने ताइवान को “पुनर्मिलन” के लिए एक अस्थायी अलगाव के रूप में देखा है।
अब शी जिनपिंग की अगुवाई में, China ने ताइवान पर दबाव बढ़ा दिया है, जिसका उद्देश्य द्वीप को चीन के अधीन लाना है। यह नीति केवल ताइवान के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए चिंता का विषय है। China की आक्रामक नीतियों के चलते, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश ताइवान का समर्थन कर रहे हैं, जिससे क्षेत्रीय तनाव और बढ़ रहा है।
बाकि ताइवान का लोकतांत्रिक और स्वतंत्र शासन प्रणाली China के अधीन नहीं रहना चाहता। ताइवान के लोग अपनी स्वतंत्रता और स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ताइवान अपनी स्वतंत्रता और लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए तैयार है।
हालाँकि China का आक्रामक रुख केवल ताइवान तक सीमित नहीं है। हाल के वर्षों में, China ने दक्षिण China सागर में भी अपनी गतिविधियाँ बढ़ा दी हैं। China ने इस क्षेत्र में कई कृत्रिम द्वीप बनाए हैं और उन पर सैन्य अड्डे स्थापित किए हैं। यह क्षेत्रीय संप्रभुता पर China के दावे को मजबूत करने के लिए किया गया है, जबकि अन्य देशों ने इन दावों का विरोध किया है।
हाल ही में भारत और China के बीच भी तनाव बढ़ा है, खासकर लद्दाख क्षेत्र में। 2020 में, दोनों देशों के सैनिकों के बीच गलवान घाटी में हिंसक झड़पें हुईं, जिससे दोनों देशों के बीच संबंध और खराब हो गए।
हांगकांग में भी China की नीतियों ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है। 2019 में, हांगकांग में प्रत्यर्पण बिल के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके बाद China ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किया, जिससे हांगकांग की स्वायत्तता को खतरा हुआ।
तो इस तरह ताइवान का मुद्दा केवल एक द्वीप का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह विश्व राजनीति और शक्ति संतुलन का हिस्सा है। China की आक्रामक नीतियाँ और ताइवान का प्रतिरोध इस संघर्ष को और जटिल बनाते हैं। विश्व समुदाय को इस मुद्दे पर ध्यान देना होगा और ऐसे कदम उठाने होंगे जो क्षेत्रीय स्थिरता और शांति को बनाए रख सकें।
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