why the Roman script is most demanded by Kokborok-speaking people in India

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why the Roman script is most demanded by Kokborok-speaking people in India

भारत में कोकबोरोक भाषी लोगों के लिए रोमन लिपि की सर्वाधिक मांग क्यों है?

56 आदिवासी सांस्कृतिक और सामाजिक संगठनों के एक छत्र संगठन, RASK, ने अपनी मांगें पूरी नहीं होने पर “आक्रामक आंदोलन” शुरू करने की धमकी दी.

वजह ये थी की उनकी  मातृ भाषा कोकबोरोक को बंगाली से हटा कर रोमन लिटरेचर के साथ संगठीय किया जाय जो इसका असली उदगम लिटरेचर की भाषा है  ,दरसल 

इस राजनीतिक घटना से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले विद्यार्थी हैं जो कोकबोरोक पढ़ते हैं. हिमालयीय शिक्षा को नियंत्रित करने वाली स्वायत्त परिषद में हर बार राजनीतिक व्यवस्था बदलती है, इससे महत्वपूर्ण परिवर्तन शुरू होते हैं.

क्या हुआ उस मामले की तरफ रुख करने से पहले  जान लेते है इससे जुड़ा इतिहास

कोकबोरोक त्रिपुरा राज्य के बोरोक लोग बोलते हैं. कोक का मतलब है “मौखिक” और बोरोक का मतलब है “लोग” या “मानव”.

कोकबोरोक एक चीन-तिब्बती मिश्रित  भाषा है ,  और कम से कम पहली शताब्दी ईस्वी में त्रिपुरी राजाओं का ऐतिहासिक रिकॉर्ड  इसी भाषा में   लिखा जाना शुरू हुआ. राजाओं के इस कालक्रम को लिखने वाली कोकबोरोक की लिटरेचर  को “कोलोमा” कहा जाता था. 

19वीं शताब्दी में इसका बंगाली अनुवाद हुआ.

14वीं शताब्दी के बाद, त्रिपुरा के शाही परिवार द्वारा पढ़ी गई कोलोमा साहित्य व्यापक रूप से कहीं खो गया है.

19वीं शताब्दी के बाद से, ट्विप्रा साम्राज्य ने कोकबोरोक में लिखने के लिए बंगाली लिटरेचर का उपयोग किया. लेकिन जब से भारत को स्वतंत्रता मिली और त्रिपुरा भारत में शामिल हो गया, कई संस्थाओं ने रोमन लिटरेचर को बढ़ावा दिया.

रोमन लिटरेचर के समर्थकों का कहना है कि बंगाली भाषा, जो इंडो-आर्यन भाषा परिवार में आती है,

लेकिन कोकबोरोक तिब्बती-बर्मन भाषा परिवार में आता है, इसलिए रोमन लिटरेचर एक लेखन प्रदान कर सकती है जो कोकबोरोक की विशेषताओं से अधिक मेल खाती है.

आखिर मुद्दा इतना गरम कैसे हो गया की जनता आंदोलन पर उतर आई 

स्वदेशी बनाम बंगाली स्क्रिप्ट पंक्ति, भारतीय आदिवासी लोगों और प्रवासी बंगालियों के बीच संघर्ष का एक महत्वपूर्ण मुद्दा है.

डाउनटूअर्थ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आदिवासी लोग, जो कभी संख्यात्मक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण थे, प्रवासी बंगाली भाषी लोगों द्वाराअब ख़त्म होने की कगार पर हैं , और राज्य के कम उत्पादक और दूर के पहाड़ी क्षेत्रों में धकेल दिए गए हैं. जबकि कुछ लोग सांस्कृतिक मोर्चे पर लड़ते हैं, तो दूसरे हथियार लेकर लड़ते हैं. सबसे बड़ी शक्ति जो आदिवासी बुद्धिजीवियों को एकजुट रखती है, वह बंगाली थोपने के खिलाफ संघर्ष है.

साथ ही 

युवा अंग्रेजी बोलने के कारण रोमन लिपि से बहुत परिचित हैं, जिससे Kokborok बोलना उनके लिए आसान होता है .

जैसे-जैसे डिजिटल technology का उपयोग और विश्वव्यापी संचार में तेजी से वृद्धि युवा पीढ़ी को प्रभावित करती है, वे Kokborok को एक स्क्रिप्ट बनाकर अधिक आकर्षक और स्वीकार्य बना सकते हैं जो उनके प्रदर्शन और परिचितता से मेल खाता है.

भाजपा के प्रवक्ता नबेंदु भट्टाचार्य ने indianexpress.com को बताया कि “भारतीयता के खिलाफ लोग कोकबोरोक के लिए एक रोमन लिपि की मांग में शामिल हैं।” इस विषय पर विधानसभा में बहस हुई. CM की प्रतिक्रिया यह थी की : किसी भी भारतीय लिपि के परिचय पर चर्चा हो सकती है, लेकिन कोई विदेशी लिपि पर नहीं. त्रिपुरा के राजा ने भी बंगाली लिपि का उपयोग किया था. त्रिपुरा पर अंतिम शासन करने वाले राजा ने बंगाली को आधिकारिक भाषा बनाया. इस लिपि को न स्वीकार करना हिंसा को भड़काना है. भाषा के लिए रोमन लिपि का प्रयोग करने का क्या कारण है? हमें लगता है कि शांति चाहने वाले बहुत से लोग और संस्थान शामिल हो सकते हैं.”

त्रिपुरा में रहने वाले 19 आदिवासी समुदायों में से अधिकांश Kokborok बोलते हैं. भाषा का पुराना इतिहास है, लेकिन तीन भाषा नीति के अनुसार यह अभी भी अपनी लिपि नहीं है. राज्य के अन्य आदिवासी समुदायों भी इसे आधिकारिक भाषा मानते हैं. अब तक बंगाली या रोमन लिपि का उपयोग किया जाता है, और 2018 में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के गठन के बाद से देवनागरी या हिंदी लिपि को लागू करने पर जोर दिया गया है. हालांकि, राजनीतिक दलों, छात्रों, भाषिक कार्यकर्ताओं और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को उठाया है. क्योंकि यह क्षेत्र में भाषा की गतिशीलता को परेशान करेगा, 

 आप सभी स्वस्थ रहे spiritual रहे यही हमारी कामना है 

धन्यवाद !

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