असम में मुस्लिम जनसंख्या को लेकर छिड़ी राजनीतिक बहस ने एक नया मोड़ ले लिया है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में दावा किया कि राज्य में मुस्लिम जनसंख्या 1951 में 12 प्रतिशत से बढ़कर अब 40 प्रतिशत हो गई है। इस दावे का AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने विरोध करते हुए इसे झूठा करार दिया और कहा कि 1951 में मुस्लिम जनसंख्या 24.68 प्रतिशत थी। इस विवाद ने असम के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में नई हलचल पैदा कर दी है।-Owaisi vs Himanta Biswa Sarma
ऐसे में क्या हिमंत बिस्वा सरमा का दावा सही है? ओवैसी का विरोध किस हद तक तथ्यात्मक है? इस विवाद के पीछे के राजनीतिक और सामाजिक कारण क्या हैं? आइए, इन सवालों के जवाब खोजते हैं और इस मुद्दे को गहराई से समझते हैं।-Owaisi vs Himanta Biswa Sarma
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मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में कहा कि असम में मुस्लिम जनसंख्या 1951 में 12 प्रतिशत से बढ़कर अब 40 प्रतिशत हो गई है। यह बयान उन्होंने रांची में एक पार्टी बैठक के दौरान दिया, जहां उन्होंने कहा कि यह उनके लिए एक जीवन-मृत्यु का मामला है और यह सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है।-Owaisi vs Himanta Biswa Sarma
इसके जवाब में AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि 1951 में असम में मुस्लिम जनसंख्या 24.68 प्रतिशत थी और सरमा का दावा झूठा है। ओवैसी ने कहा कि हिमंत मुसलमानों से नफरत करते हैं और उनके झूठ के कारण पूरी प्रशासनिक व्यवस्था मुस्लिम विरोधी हो गई है।
ओवैसी ने यह भी कहा कि 2001 में मुस्लिम जनसंख्या 30.92 प्रतिशत थी और 2011 की जनगणना में 34.22 प्रतिशत। हिमंत बिस्वा सरमा ने यह भी आरोप लगाया कि झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या बढ़ रही है और उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर हमला करते हुए कहा कि उन्होंने झारखंड को “मिनी-बांग्लादेश” बना दिया है।
आपको बता दे कि हिमंत बिस्वा सरमा का बयान राजनीतिक लाभ उठाने के उद्देश्य से दिया गया प्रतीत होता है। भाजपा लंबे समय से असम में बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे को उठाती रही है, और इस तरह के बयानों से पार्टी अपने समर्थकों को मजबूत करने की कोशिश कर रही है।
वही ओवैसी के दावों में तथ्यों की अधिकता दिखती है। 1951 की जनगणना में असम में मुस्लिम जनसंख्या 24.68 प्रतिशत थी। हिमंत का 12 प्रतिशत का आंकड़ा वास्तविकता से परे है और इसे एक राजनीतिक चाल के रूप में देखा जा सकता है।
वैसे इस विवाद ने असम के सामाजिक ताने-बाने को भी प्रभावित किया है। हिमंत के बयान ने मुस्लिम समुदाय में असुरक्षा की भावना को बढ़ाया है। यह समाज में विभाजन और अस्थिरता को बढ़ावा देने वाला हो सकता है।
हालाँकि असम की जनसांख्यिकी हमेशा से जटिल रही है। 1971 के बाद से बांग्लादेश से हुए प्रवासन ने असम की जनसांख्यिकी में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं। लेकिन इसे केवल राजनीतिक मुद्दा बनाना गलत होगा।
इस विवाद ने प्रशासनिक चुनौतियों को भी उजागर किया है। असम में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए सरकार को संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा।
बाकि कश्मीर में भी जनसांख्यिकी को लेकर इसी तरह के विवाद होते रहे हैं। हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच जनसंख्या के मुद्दे ने राजनीतिक और सामाजिक तनाव पैदा किया है।
इसी तरह तेलंगाना राज्य के गठन के समय भी जनसांख्यिकी एक बड़ा मुद्दा था। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के विभाजन ने कई सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को जन्म दिया।
तो इस तरह हमने जाना कि असम में मुस्लिम जनसंख्या पर छिड़ा विवाद राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। हिमंत बिस्वा सरमा और असदुद्दीन ओवैसी के बीच की नोकझोंक ने इस मुद्दे को और जटिल बना दिया है। यह जरूरी है कि इस मुद्दे को संतुलित और तथ्यों के आधार पर सुलझाया जाए ताकि समाज में शांति और स्थिरता बनी रहे।
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