Maulana Qari Ishaq Gora statement on start of Haj pilgrimage gave 5 important information ANN | हज यात्रा की शुरुआत पर मौलाना कारी इसहाक गोरा का आया बयान, कहा

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Statement of Qari Ishaq Gora on Hajj: मशहूर देवबन्दी उलेमा मौलाना कारी इसहाक गोरा बताते हैं कि हज इस्लाम का एक बहुत बड़ा फर्ज है, जो हर उस मुसलमान पर जिंदगी में एक बार वाजिब होता है, जो माली (आर्थिक) और जिस्मानी (शारीरिक) तौर पर काबिल हो.

गोरा कहते हैं,  हज एक इबादत ही नहीं, बल्कि एक तर्बियत है. यह हमें सब्र, अल्लाह की याद, और इंसानियत की खिदमत सिखाता है. ये पांच दिन इंसान को पूरी तरह बदल सकते हैं, अगर उसे समझकर किया जाए.

पहला दिन- 8 ज़िल-हिज्जा (तरवियाह का दिन)
मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा बताते हैं, ‘हाजी लोग मक्का से ‘इहराम’ पहनकर मिना नाम की जगह जाते हैं. वहां नमाजें पढ़ते हैं और रात भर रुकते हैं. ये दिन हमें तैयारी का पैग़ाम देता है. जिस्म के साथ-साथ दिल और दिमाग को भी पाक करना है.”

दूसरा दिन- 9 ज़िल-हिज्जा (अराफात का दिन)
मौलाना कारी इसहाक गोरा बताते हैं, ‘यह सबसे अहम दिन होता है. सब लोग अराफात के मैदान में जमा होकर अल्लाह से दुआ करते हैं, गुनाहों की माफी मांगते हैं. यही वो जगह है जहां पैगम्बर मुहम्मद सा॰ ने आखिरी खुत्बा दिया था. सूरज डूबने के बाद सब लोग ‘मुज़दलिफ़ा’ जाते हैं और रात खुले आसमान के नीचे बिताते हैं.

तीसरा दिन- 10 ज़िल-हिज्जा (कुर्बानी और ईद का दिन)
मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा बताते हैं…’इस दिन हाजी शैतान को कंकड़ मारते हैं, ये इबलीस के खिलाफ जंग की निशानी है. फिर जानवर की कुर्बानी दी जाती है, जैसे हजरत इब्राहीम अ.स. ने अल्लाह के हुक्म पर करने का इरादा किया था. बाल कटवाकर इहराम उतारा जाता है, फिर मक्का जाकर काबा का तवाफ किया जाता है. यही असली ईद है. जब इंसान अपने नफ्स को कुर्बान करे.”

चौथा दिन- 11 ज़िल-हिज्जा (अय्यामे तशरीक)
मौलाना कारी इसहाक गोरा बताते हैं, ‘तीनों ‘जमरात’ (शैतानों के निशान) को सात-सात कंकड़ मारे जाते हैं. यह अमल बताता है कि शैतान बार-बार आएगा. कभी लालच की शक्ल में, कभी गुस्से में, कभी घमंड में लेकिन हमें हर बार उसे हटाना है.”

पांचवां दिन-12 ज़िल-हिज्जा (रुखसती का दिन)
मौलाना कारी इसहाक गोरा बताते हैं, ‘आज आख़िरी बार शैतान को कंकड़ मारे जाते हैं और फिर हाजी लोग वापस मक्का जाते हैं. वहां जाकर ‘तवाफे-विदा’ करते हैं, यानी अल्लाह के घर का आखिरी चक्कर लगाते हैं और अल्लाह से जुदाई के आंसू के साथ दुआ करते हैं कि, ‘या रब, मुझे फिर बुला लेना!’

मौलाना कारी इसहाक गोरा समझाते हैं कि, ‘हज कोई सैर नहीं है. ये एक खुद को सुधारने का सफर है. यह अमल हमें तौबा, सब्र, सफ़ाई, इंसानियत और खुदा से मोहब्बत का पैग़ाम देता है.”



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