Forest Conservation संशोधन विधेयक, 2023 का उद्देश्य वन संरक्षण अधिनियम,1980 में कुछ परिवर्तन करना रहा है, जो वन भूमि के गैर-वन उद्देश्यों के लिए उपयोग को रोकने के लिए बनाया गया था। विधेयक का दावा है कि यह वन कार्बन स्टॉक को बढ़ाने और प्रतिपूर्ति वनीकरण के लिए भूमि उपलब्ध कराने के लिए वन भूमि के कुछ प्रकारों को विधेयक के दायरे से बाहर रखना चाहता है। इसके अलावा, विधेयक राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित परियोजनाओं, जू और इको-पर्यटन सुविधाओं, और वन भूमि को निजी या सार्वजनिक संस्थाओं को सौंपने के लिए कुछ नियमों को भी बदलना चाहता था।–Forest Conservation Amendment
विधेयक के पारित होने के बाद, विधेयक के विरोध में देश भर में नागरिकों और जलवायु कार्यशील समूहों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन किए। उनका कहना है कि विधेयक वनों और वन्यजीवों के संरक्षण को कमजोर करेगा, वन अधिकारियों को अधिक शक्ति देगा, और वन जनजातियों और अन्य वन निवासियों के अधिकारों को हानि पहुंचाएगा। इस वीडियो में, हम विधेयक के प्रमुख प्रावधानों, उनके प्रभावों, और उनके विरोध के कारणों का विश्लेषण करेंगे। नमस्कार आप देख रहे है AIRR न्यूज़।
विधेयक के अनुसार, वन संरक्षण अधिनियम, 1980 केवल उन वन भूमियों पर लागू होगा, जो भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत वन के रूप में अधिसूचित हैं, या जो 1980 के अधिनियम के प्रभाव लागू होने के बाद सरकारी रिकॉर्ड में वन के रूप में दर्ज हैं। विधेयक दो श्रेणियों की भूमि को अधिनियम के दायरे से बाहर रखता है: एक जो भूमि 25 अक्टूबर, 1980 से पहले वन के रूप में दर्ज हुई थी, लेकिन वन के रूप में अधिसूचित नहीं हुई थी, और दूसरी जो भूमि 12 दिसंबर, 1996 से पहले वन-उपयोग से गैर-वन-उपयोग में बदल गई थी। इस प्रावधान का उद्देश्य उन भूमियों को अधिनियम के अंतर्गत नहीं लाना है, जो पहले से ही आवास, संस्थान, सड़कें, आदि के लिए उपयोग में आ चुकी है।
विधेयक द्वारा वन भूमि के इन दो प्रकारों को अधिनियम के दायरे से बाहर रखने का प्रभाव यह होगा कि वन भूमि के लगभग 40% को वन उपयोग से गैर-वन उपयोग में बदलने के लिए अधिकार मिल जाएगा, जिससे वन कार्बन स्टॉक में कमी, वन्यजीवों के आवास में नुकसान, और वन जनजातियों और अन्य वन निवासियों के जीवन और आजीविका में खतरा आएगा। विधेयक के विरोधी इस बात का दावा करते हैं कि विधेयक वन भूमि को विकास के नाम पर बेचने और वन अधिकारियों को वन भूमि के उपयोग के बारे में फैसला करने का अधिकार देने का एक प्रयास है।
विधेयक द्वारा वन भूमि के उपयोग के लिए नियमों में भी कुछ बदलाव किए गए हैं। विधेयक के अनुसार, राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित परियोजनाओं के लिए वन भूमि का उपयोग करने के लिए केंद्र सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी, बल्कि राज्य सरकार की अनुमति काफी होगी। इससे वन भूमि के उपयोग की प्रक्रिया में तेजी आएगी, लेकिन वन भूमि के उपयोग के प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए पर्यावरणीय और सामाजिक नियमों को दरकिनार कर दिया जाएगा।
आपको बता दे कि, विधेयक द्वारा वन भूमि को जू और इको-पर्यटन सुविधाओं के लिए उपयोग करने के लिए भी कुछ नए नियम बनाए गए हैं। विधेयक के अनुसार, वन भूमि के 10% तक का उपयोग जू और इको-पर्यटन सुविधाओं के लिए किया जा सकता है, जिसके लिए केवल राज्य सरकार की अनुमति चाहिए। इससे वन भूमि का उपयोग पर्यटन के लिए बढ़ाया जा सकता है, लेकिन इसका प्रभाव वन्यजीवों के आवास, वन जनजातियों के संस्कृति, और वन के जैव विविधता पर भी होगा।
विधेयक द्वारा वन भूमि को निजी या सार्वजनिक संस्थाओं को सौंपने के लिए भी एक नया प्रावधान बनाया गया है। विधेयक के अनुसार, वन भूमि को वन उपयोग के लिए ही निजी या सार्वजनिक संस्थाओं को सौंपा जा सकता है, जिसके लिए केंद्र सरकार की अनुमति चाहिए। इस प्रावधान का उद्देश्य वन भूमि के प्रबंधन में निजी या सार्वजनिक संस्थाओं को भागीदारी देना है, लेकिन इसका प्रभाव वन भूमि के उपयोग के नियंत्रण में सरकार की कमजोरी, वन भूमि के उपयोग के लाभों का असमान वितरण, और वन भूमि के उपयोग के नियमों के उल्लंघन का खतरा होगा।
विधेयक के प्रावधानों के प्रभावों को समझने के लिए, हमें वन भूमि के महत्व, वन भूमि के उपयोग के वर्तमान नियम, और वन भूमि के उपयोग के प्रमुख पक्षधारों के बारे में जानना चाहिए।
वन भूमि का महत्व इसलिए है, क्योंकि वन भूमि भारत के पर्यावरण, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक विकास, और सामाजिक न्याय के लिए बहुत मायने रखती है। वन भूमि भारत के कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 21% है, जिसमें लगभग 90,000 प्रजातियों के 45,000 वन्यजीव पाए जाते हैं, जिनमें से 1,300 लुप्तप्राय हैं। वन भूमि भारत के कुल कार्बन स्टॉक का लगभग 30% रखती है, जो जलवायु परिवर्तन को रोकने में मदद करती है। वन भूमि भारत के आर्थिक विकास में भी योगदान करती है, क्योंकि वन उत्पादों और सेवाओं का वार्षिक मूल्य लगभग 1.7 लाख करोड़ रुपये है, जो भारत के जीडीपी का 1.4% है। वन भूमि भारत के सामाजिक न्याय के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वन भूमि पर लगभग 25 करोड़ लोगों का निर्भर है, जिनमें से अधिकांश वन जनजातियां हैं, जिनके पास वन भूमि के उपयोग, प्रबंधन, और लाभों के अधिकार हैं।
वन भूमि के उपयोग के वर्तमान नियम वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत बनाए गए हैं, जो वन भूमि के गैर-वन उपयोग को रोकने के लिए बनाया गया था। इस अधिनियम के तहत, वन भूमि के गैर-वन उपयोग के लिए केंद्र सरकार की अनुमति लेनी पड़ती है, जो वन भूमि के प्रकार, उपयोग के प्रकार, और प्रतिपूर्ति वनीकरण के आधार पर दी जाती है। इस अधिनियम के तहत, वन भूमि के उपयोग के लिए पर्यावरणीय और सामाजिक मूल्यांकन, वन जनजातियों और अन्य वन निवासियों की सहमति, और वन भूमि के उपयोग के प्रभावों की निगरानी और रिपोर्टिंग की आवश्यकता होती है। इस अधिनियम के तहत, वन भूमि के उपयोग के लिए वन अधिकार अधिनियम, 2006 का भी पालन करना पड़ता है, जो वन जनजातियों और अन्य वन निवासियों को वन भूमि के उपयोग, प्रबंधन, और लाभों के अधिकार देता है।
Forest Conservation संशोधन विधेयक, 2023 के प्रमुख प्रावधानों का प्रभाव विभिन्न पक्षधारों पर अलग-अलग होता है। इन पक्षधारों में सरकार, विकास के लिए वन भूमि का उपयोग करने वाले निजी या सार्वजनिक संस्थान, वन भूमि के संरक्षण के लिए काम करने वाले जलवायु कार्यशील समूह, और वन भूमि पर निर्भर रहने वाले वन जनजातियां और अन्य वन निवासी शामिल हैं।
सरकार के लिए, विधेयक विकास परियोजनाओं को तेजी और सरलता से अनुमति देने में मदद करता है, जिससे आर्थिक लाभ, राष्ट्रीय सुरक्षा, और पर्यटन के क्षेत्र में उन्नति हो सकती है। विपरीत, विधेयक वन भूमि के उपयोग के प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए पर्यावरणीय और सामाजिक नियमों को दरकिनार कर देता है, जिससे पर्यावरण, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन, और वन जनजातियों और अन्य वन निवासियों को नुकसान हो सकता है।
विकास के लिए वन भूमि का उपयोग करने वाले निजी या सार्वजनिक संस्थान के लिए, विधेयक उन्हें वन भूमि के उपयोग के लिए आसानी से अनुमति देता है, जिससे उनके विकास के परियोजनाओं को बाधा नहीं आती। विपरीत, विधेयक के कारण उन्हें पर्यावरणीय और सामाजिक जिम्मेदारी लेनी पड़ सकती है, जिससे उनके विकास के परियोजनाओं को विरोध, विवाद, और मुकदमों का सामना करना पड़ सकता है।
वन भूमि के संरक्षण के लिए काम करने वाले जलवायु कार्यशील समूह के लिए, विधेयक वन कार्बन स्टॉक को बढ़ाने और प्रतिपूर्ति वनीकरण के लिए भूमि उपलब्ध कराने का दावा करता है, जिससे जलवायु परिवर्तन को रोकने में मदद मिल सकती है। विपरीत, विधेयक वन भूमि के लगभग 40% को वन उपयोग से गैर-वन उपयोग में बदलने की अनुमति देता है, जिससे वन कार्बन स्टॉक में कमी, वन्यजीवों के आवास में नुकसान, और वन जनजातियों और अन्य वन निवासियों के जीवन और आजीविका में खतरा आ सकता है।
वन भूमि पर निर्भर रहने वाले वन जनजातियां और अन्य वन निवासी के लिए, विधेयक वन भूमि के उपयोग के लिए वन अधिकार अधिनियम, 2006 का पालन करने का दावा करता है, जो उन्हें वन भूमि के उपयोग, प्रबंधन, और लाभों के अधिकार देता है। विपरीत, विधेयक वन भूमि के लगभग 40% को वन उपयोग से गैर-वन उपयोग में बदलने की अनुमति देता है, जिससे उनके वन भूमि के अधिकारों को हानि पहुंच सकती है।
Forest Conservation संशोधन विधेयक, 2023 एक विवादास्पद और प्रभावशाली विधेयक है, जो वन भूमि के उपयोग के नियमों में काफी परिवर्तन करता है। विधेयक का दावा है कि यह वन भूमि के उपयोग की प्रक्रिया को तेज और सरल बनाएगा, वन कार्बन स्टॉक को बढ़ाएगा, और वन भूमि के उपयोग के लिए वन अधिकार अधिनियम, 2006 का पालन करेगा। विधेयक के विरोधी का कहना है कि विधेयक वन भूमि के संरक्षण को कमजोर करेगा, वन अधिकारियों को अधिक शक्ति देगा, और वन जनजातियों और अन्य वन निवासियों के अधिकारों को हानि पहुंचाएगा। विधेयक के प्रावधानों के परिणामों का विश्लेषण करने के बाद, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि विधेयक के लाभ और हानि का संतुलन नहीं है, और विधेयक के प्रभावित पक्षों के बीच विवाद, सहमति, और समन्वय का अभाव है। इसलिए, विधेयक को पुनरावलोकन करने की आवश्यकता है, जिसमें वन भूमि के महत्व, वन भूमि के उपयोग के वर्तमान नियम, और वन भूमि के उपयोग के प्रमुख पक्षधारों के दृष्टिकोणों को ध्यान में रखा जाए।
इस प्रकार, हमने देखा कि Forest Conservation संशोधन विधेयक, 2023 के प्रमुख प्रावधानों, उनके प्रभावों, और उनके विरोध के कारणों का विश्लेषण किया है। हमें उम्मीद है कि आपको यह वीडियो पसंद आया होगा। अगर आपको यह वीडियो पसंद आया है, तो कृपया इसे लाइक करें और AIRR न्यूज़ को सब्सक्राइब करें। अगर आपके पास इस विषय पर कोई टिप्पणी या प्रश्न है, तो कृपया नीचे कमेंट करें। धन्यवाद!