18 नंबर की जर्सी का 17 साल का इंतजार खत्म, कोहली ने RCB को दिलाया पहला IPL खिताब | The 17-year wait for jersey number 18 is over, Kohli gave RCB its first IPL title

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यह जीत केवल आरसीबी की नहीं, बल्कि विराट कोहली जैसे खिलाड़ियों की मेहनत और समर्पण की प्रतीक है, जिन्होंने 17 साल तक उम्मीद नहीं छोड़ी। यह जीत करोड़ों फैंस के विश्वास की भी है, जो हर हार के बाद भी ‘ई साला कप नम्मदे’ कहते रहे। अब यह सपना हकीकत बन चुका है, कप अब सचमुच ‘नम्मदु’ है।

अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में मंगलवार रात जब पंजाब किंग्स को छह रनों से हराकर आरसीबी ने ट्रॉफी उठाई, तो मैदान पर सिर्फ पटाखे नहीं फूटे, बल्कि क्रिकेट इतिहास का एक अधूरा अध्याय भी पूरा हो गया।। आरसीबी ने पहले बल्लेबाजी की और 190/9 बनाए, जिसे पंजाब किंग्स 6 रनों से चूक गई।

आरसीबी की पारी शुरुआत में औसत से कम प्रतीत हो रही थी। लेकिन फिर जो हुआ, उसने आरसीबी की पहचान को नर्वस फिनिशर से बदलकर चैंपियन बना दिया। गेंदबाजों ने पंजाब को आखिरी ओवर तक बांधकर रखा और मैच आरसीबी की मुट्ठी में आ गया। दोनों ही टीमों को पहली आइपीएल ट्रॉफी का इंतजार था और किस्मत ने आरसीबी का साथ दिया।

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यह जीत केवल एक टीम की नहीं, बल्कि उन सभी प्रशंसकों की थी जो मैच से पहले कह रहे थे, ई साला कप नम्मदे Ee sala cup namde (इस साल कप हमारा होगा)। और आखिरकार, यह साल वाकई उनका हो गया। इस बार कप नम्मदे नहीं, कप नम्मदु है (कप अब वास्तव में हमारा है)। 2011 में कोहली आरसीबी के कप्तान बने मगर इस दौरान कम बार नाकामियों के बावजूद विराट और आरसीबी का एक-दूसरे पर भरोसा बना रहा। आरसीबी के प्रशंसकों का भरोसा भी विराट पर बना रहा।

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भावनाओं, उम्मीदों और अटूट विश्वास की जीत 18 नंबर की जर्सी वाले विराट कोहली के साथ 17 साल बाद आरसीबी का भाग्य भी चमका। यह केवल एक मैच नहीं था, यह भावनाओं, उम्मीदों और अटूट विश्वास की जीत थी। कोहली ने पहले ही T20 वर्ल्ड कप, वनडे वर्ल्ड कप और चैंपियंस ट्रॉफी जीत कर अपना नाम इतिहास में दर्ज करवा लिया था, लेकिन एक अधूरी जगह हमेशा से थी और वह थी आइपीएल ट्रॉफी।

कोहली और आरसीबी साथ-साथ पले-बढ़े 2008 में आइपीएल की शुरुआत के साथ ही कोहली और आरसीबी का सफर शुरू हुआ। तब से लेकर आज तक कोहली कभी टीम से अलग नहीं हुए। कप्तान के तौर पर उतार-चढ़ाव, हार की टीस और सोशल मीडिया पर ट्रोल्स, इन सबसे गुजरते हुए उन्होंने एक खिलाड़ी नहीं, एक प्रतीक की तरह इस टीम का प्रतिनिधित्व किया।

चौथी बार में मिली जीत आरसीबी इससे पहले तीन बार भी ट्रॉफी के बिल्कुल करीब पहुंच कर जीत से दूर रह गई थी। आरसीबी तीन बार उपविजेता रही। आइपीएल के दूसरे साल यानी 2009 में आरसीबी फाइनल में पहुंच गई थी मगर डेक्कन चार्जर्स से हारने के कारण उसे उप विजेता से ही संतोष करना पड़ा था। इसके बाद 2011 में दूसरी बार आरसीबी फाइनल तक पहुंची मगर चेन्नई सुपर किंग्स (सीएसके) से 58 रनों से हार का सामना करना और इस बार भी उप विजेता रही। घरेलू मैदान यानी चेन्नई में हुए मुकाबले में सीएसके ने लगातार दूसरी बार ​​खिताब पर कब्जा किया। इसके बाद 2016 में आरसीबी तीसरी बार फाइनल में पहुंची मगर घरेलू मैदान यानी बेंगलूरु के एम. चिन्नास्वामी स्टे​डियम में हुए मुकाबले में किस्मत ने एक बार फिर आरसीबी का साथ नहीं दिया और वह सनराइजर्स हैदराबाद से महज आठ रनों से हार के कारण उसे फिर उप विजेता से ही संतोष करना पड़ा।

संयोग: तब 6 रन से हारे थे, इस बार 6 रन से जीते
आरसीबी दो बार फाइनल में 10 से कम रन से ट्रॉफी नहीं जीत पाई थी। 2009 में जोहान्सबर्ग में हुए फाइनल मुकाबले में आरसीबी सिर्फ छह रन से हारी थी और इस बार सिर्फ छह रन से ही जीत का ट्रॉफी पर कब्जा कर लिया। गौरतलब है कि मुंबई इंडियंस और चेन्नई सुपर किंग्स दोनों ही आईपीएल के इतिहास की सबसे सफल टीमों में से दो हैं, जिन्होंने पांच-पांच खिताब जीते हैं। चेन्नई सबसे ज्यादा बार आईपीएल फाइनल (10) तक पहुंची है।

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बेंगलूरु में उत्सव का माहौल जैसे ही आरसीबी ने जीत दर्ज की, बेंगलूरु की सड़कों पर जश्न की लहर दौड़ गई। एमजी रोड, कोरमंगला और इंदिरानगर जैसे इलाकों में फैंस की भीड़उमड़ पड़ी। जैसे ही अंतिम गेंद डाली गई, सड़कें पटाखों, गाड़ियों के हॉर्न और ‘आरसीबी…आरसीबी’ नारों से गूंज उठीं। ऐसा लग रहा था जैसे यह केवल एक मैच की जीत नहीं थी, यह पूरे शहर की आत्मा की जीत हो।





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