दोस्तों, आपको बता दें कि इन दिनों रियल एस्टेट सेक्टर में जबरदस्त बूम देखने को मिल रहा है। उम्मीद जताई जा रही है कि रियल एस्टेट सेक्टर साल 2030 तक देश की जीडीपी में तकरीबन 30 फीसदी का योगदान कर सकती है। कोविड-19 और नीतिगत रूकावटों के बावजूद रियल एस्टेट सेक्टर तेजी से उभरा है। किफायती घरों की जबरदस्त डिमांड और अगले कुछ वर्षों में देश में करोड़ों किफायती घरों की आवश्यकता पड़ने वाली है। जाहिर है, आने वाले सालों में रियल एस्टेट इंडस्ट्री का साइज कई गुना बढ़ने वाला है।
ट्रिलियन डॉलर की हो जाएगी रियल एस्टेट इंडस्ट्री
नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल यानी नारेडको और ईएंडवाई की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगले 7 साल सालों में रियल एस्टेट इंडस्ट्री 01 ट्रिलियन डॉलर का हो जाएगा। बता दें कि साल 2021 में रियल एस्टेट इंडस्ट्री का साइज 200 बिलियन डॉलर का था। विश्लेषण के आधार पर यह तय किया गया है कि रियल एस्टेट सेक्टर साल 2030 तक करीब 5 गुना बढ़ जाएगा।
देश की जीडीपी में रियल एस्टेट का योगदान
उम्मीद जताई जा रही है कि साल 2030 तक रियल एस्टेट सेक्टर पांच गुना बढ़ जाएगा। ऐसे में संभव है कि देश की जीडीपी में रियल एस्टेट सेक्टर तकरीबन 18 से 20 फीसदी तक योगदान दे सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में रियल एस्टेट सेक्टर में डिमांड और सप्लाई के बीच एक बड़ा अंतर है, जो आने वाले समय में ग्रोथ को बढ़ाने में मदद साबित हो सकता है।
देश में आवासीय इकाईयों की कमी
ताजा रिपोर्ट के मुताबिक अभी देश के शहरी क्षेत्रों में एक करोड़ आवासीय इकाइयों की कमी होने का अनुमान है। बढ़ती जनसंख्या के मुताबिक देश के विभिन्न राज्यों में आवासीय घरों की मांग में बेतहाशा बढ़ोतरी होना लाजिमी है। उपरोक्त रिपोर्ट इस बात की ओर इशारा करती है कि साल 2030 तक किफायती घरों के मामले में तकरीबन ढाई करोड़ आवासीय घरों की जरूरत पड़ सकती है।
रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में देरी की असली वजह
यदि हम रियल एस्टेट सेक्टर में आने वाली समस्याओं की बात करें तो सामान्यतया किसी प्रोजेक्ट की लागत का केवल 30 या 35 फीसदी हिस्से के बराबर टर्म लोन मिल पाता है। यदि प्रोजेक्ट में किसी वजह से देरी हो जाती है तो बढ़ने वाली लागत के लिए फाइनेंस खोजना मुश्किल हो जाता है। वहीं दूसरी तरफ सरप्लस नकदी आने से पहले ही कर्ज की किस्तें शुरू हो जाती हैं। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में देरी की अन्य वजहों में जमीन की मंजूरी में डिले और प्री सेल्स का कम होना शामिल है।
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