राजस्थान के राजघरानों की सियासत और सत्ता पर मजबूत पकड़

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राजस्थान राज्य की बात करें तो यह पहले राजपूताना का गढ़ था, जहां आजादी से पहले राजतांत्रिक  सरकारें अपने वजूद में थी। लेकिन शायद यह बात जानकर आपको हैरानी होगी कि देश को आजाद हुए कई दशक बीत चुके हैं बावजूद इसके इस राज्य के राजघरानें यहां की सियासत और सत्ता पर आज भी अपना मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं। राजस्थान के राजपरिवार अपने हितों के साधनों के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े हुए हैं।

यह सौ फीसदी सच है कि राजस्थान के राजपरिवार के लोग आजादी के बाद देश की प्रमुख पार्टियों  जैसे जनसंघ या भाजपा, कांग्रेस आदि के साथ जुड़कर लोकसभा और विधानसभा के जरिए चुनाव जीतकर सियासत और सत्ता को मजबूती से पकड़े रखा। इस स्टोरी में हम आपको राजस्थान के कुछ ऐसे प्रमुख राजघरानों से रूबरू करवाएंगे, जिन्होंने राजनीतिक वर्चस्व के जरिए सियासत में अपनी हनक बनाए रखा।

1-धौलपुर राजपरिवार और वसुंधरा राजे

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धौलपुर राजघराने की बहु और सिंधिया परिवार की बेटी वसुंधरा राजे अब तक दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी है। राजस्थान के लोग वसुंधरा राजे को ससम्मान रानी कहकर संबोधित करते हैं। धौलपुर से विधायक रहने के अलावा वह झालावाड़ से पांच बार लोकसभा सदस्य भी रह चुकी हैं। बीजेपी की कद्दावर नेताओं में शुमार की जाने वाली वसुंधरा राजे राजस्थान के प्रत्येक चुनाव में चाहे वह लोकसभा  हो या फिर विधानसभा, प्रभावी भूमिका निभाती हैं। संभव है हर बार की तरह इस बार भी विधानसभा का चुनाव वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा।

2- जयपुर राजपरिवार का राजनीति से पुराना रिश्ता

जयपुर राजपरिवार वर्षों पहले से ही राजनीति से जुड़ा रहा है। जयपुर के पूर्व महाराजा, ब्रिगेडियर भवानी सिंह (सेवानिवृत्त) की बेटी दीया कुमारी, भाजपा का प्रतिनिधित्व करने वाली राज्य विधानसभा की सदस्य हैं। उनके पिता भवानी सिंह ने 1989 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे। राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र खंगारोत का कहना है कि दीया कुमारी को अपनी दादी राजमाता गायत्री देवी से आकर्षण और राजनीतिक कौशल विरासत में मिला है। राजमाता गायत्री देवी ने भी 1962 से 1971 तक जयपुर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था।

3- कांग्रेस और बीजेपी में भरतपुर राजपरिवार का दबदबा

बता दें कि भरतपुर राजघराने के विश्वेंद्रसिंह राज्य कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक माने जाते हैं। विश्वेन्द्र सिंह साल 1989 में जनता दल से, 1999 व 2004 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़कर लोकसभा में भरतपुर का नेतृत्त्व कर चुके हैं।  मौजूदा समय में विश्वेंद्रसिंह डीग-कुम्हेर विधानसभा सीट से विधायक हैं। विश्वेंद्रसिंह के चाचा मानसिंह भी विधायक रहे और उनकी बेटी कृष्णेन्द्र कौर राज्य की वसुंधरा सरकार में मंत्री थी। 

4-भिंड और शाहपुरा रियासत का दमखम

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महाराणा प्रताप के छोटे शक्ति सिंह के वंशज भिंडर राजपरिवार के रणधीर सिंह अपनी लोकप्रियता के दम पर निर्दलीय विधायक हैं। वहीं शाहपुरा के राव राजेन्द्र सिंह बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं। बीजेपी से तीन बार विधायक रह चुके राजेन्द्र सिंह जी मौजूदा समय में राजस्थान विधानसभा के उपाध्यक्ष पद पर आसीन हैं। चौमूं ठिकाने के शाही राजघराने की रूक्समणी कुमारी भी आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़कर राजनीतिक पकड़ के जरिए सत्ता पर पकड़ बनाए रखना चाहती हैं। 

5-  उदयपुर राजपरिवार का प्रभाव

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स्वाभिमान के प्रतीक महाराणा प्रताप के वंशज उदयपुर राजपरिवार पूरे राजस्थान में अपनी लोकप्रिय छवि और बेशुमार धनसंपत्ति के लिए जाना जाता है। इस राजपरिवार के सदस्य महेन्द्र सिंह मेवाड़ बतौर कांग्रेस उम्मीदवार लोकसभा चुनाव में एक लाख 90 हजार मतों से विजयश्री हासिल की थी। मौजूदा समय में उदयपुर के प्रिंस लक्ष्यराज सिंह इन दिनों सुर्खियों में छाए हुए हैं, चर्चा है कि वह भी एक बार राजनीति अखाड़े में अपनी ताकत आजमाना चाहते हैं।

6- बीकानेर, जैसलमेर और कोटा के राजघरानों का राजनीतिक हस्तक्षेप

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कोटा राजघराने के इज्यराज सिंह बतौर कांग्रेस पार्टी से लोकसभा सांसद रह चुके हैं। वहीं बीकानेर राजघराने की सिद्धी कुमारी वर्तमान में भाजपा विधायक हैं। जैसलमेर राजपरिवार के सदस्य विक्रम सिंह की तरफ से विधानसभा चुनाव 2023 में बतौर बीजेपी उम्मीदवार चुनाव लड़ने की 100 फीसदी संभावना है।

7- अलवर राजपरिवार के जितेन्द्र सिंह

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अलवर के पूर्व राजशाही परिवार के सदस्य जितेन्द्र सिंह कांग्रेस के सक्रिय सदस्यों में से एक माने जाते हैं। बतौर कांग्रेस उम्मीदवार वह अलवर से दो बार विधायक भी चुने जा चुके हैं। इससे पूर्व वह मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री थे। यह कहावत सही है कि राजस्थान की राजनीति लंबे समय से पुराने राजघरानों का घर रही है।

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