देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 जून को अमेरिका की यात्रा पर जा रहे हैं जहां वो राजकीय मेहमान के साथ-साथ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के निजी मेहमान भी होंगे…पीएम मोदी के अमेरिका दौरे पर सबकी नजरें दोनों देशों के बीच होने वाली सैन्य डील पर टिकी हैं…माना जा रहा है कि इस दौरान एमक्यू-9B प्रीडेटर ड्रोन खरीदने की घोषणा हो सकती है…ये वही ड्रोन है जिससे अलकायदा के सरगना अयमान अल-जवाहिरी को मारा गया था…इसकी खासियत ये है कि उसके आने-जाने की खबर तक नहीं मिलती जब तक वो अपना काम नहीं कर देता…
हम सभी जानते हैं कि अमेरिका और भारत के बीच काफी समय से एमक्यू-9बी ड्रोन की जो डील अटकी हुई है वो अब अपने मुकाम पर पहुंच सकती है…अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल की एक रिपोर्ट की मानें तो भारत इस खतरनाक ड्रोन की डील को फाइनल करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ चुका है…ये ड्रोन हिमालय के क्षेत्र में लगी चीन और पाकिस्तान की सीमा पर भारत की सुरक्षा को और मजबूत कर सकेगा…साथ ही हिंद महासागर में चीन के खिलाफ सुरक्षा घेरे को भी मजबूत करेगा…
एमक्यू-9B प्रीडेटर ड्रोन की खरीद को लेकर भारत सरकार जल्द ही कोई फैसला ले सकती है…अगर यह डील फाइनल हो जाती है तो भारत और अमेरिका के रिश्तों में ये मील का पत्थर होगी…सूत्रों की मानें तो अगले कुछ हफ्तों में इस डील को मंजूरी मिल सकती है…अगर भारत खरीद के लिए डील साइन करता है तो फिर उसे अमेरिका की मंजूरी का इंतजार करना होगा…जिसके बाद दोनों देशों की सरकारों के बीच एक समझौता साइन होगा…इस तरह का समझौता भारत को दुनिया का पहला ऐसा देश बना देगा जो अमेरिका का संधि सहयोगी ना होते हुए भी इस ड्रोन का लेटेस्ट वर्जन खरीदेगा…
भारत ने पहले 30 ड्रोन को करीब तीन अरब डॉलर में खरीदने की योजना बनाई थी…इसके बाद फिर संख्या को 18 से 24 के बीच किया गया है…ड्रोन की संख्या हाल ही में तीनों सेनाओं के प्रतिनिधियों की तरफ से हुई एक पैनल चर्चा के बाद कम किया गया था…एमक्यू-9बी प्रीडेटर ड्रोन को सैन डियागो स्थित जनरल एटॉमिक्स की तरफ से निर्मित किया जाता है…साल 2020 के बाद से यह भारत को होने वाली पहली सबसे बड़ी मिलिट्री बिक्री है…उस समय भारत ने लॉकहीड मार्टिन की तरफ से तैयार दो दर्जन सिकोरस्की MH-60 हेलीकाप्टर्स खरीदे थे…जो करीब 2.6 अरब डॉलर की डील थी…
इस डील के फाइनल होते ही अमेरिका के साथ भारत के सुरक्षा संबंध और गहरे हो जाएंगे…अमेरिका और भारत के बीच साल 2008 में रक्षा संबंध ना के बराबर थे…पेंटागन के मुताबिक साल 2020 में यह आंकड़ा बढ़कर 20 अरब डॉलर तक पहुंच गया था…दोनों देशों ने पिछले एक दशक में ऐसे कई समझौतों और सौदें पर साइन किए हैं जिसके बाद दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के मिलिट्री बेसेज का प्रयोग कर सकेंगी…इन मिलिट्री बेसज को रि-फ्यूलिंग के लिए प्रयोग किया जा रहा है…
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