बौद्ध प्रतिमा के अंदरमिली हजार साल पुरानी लाश, जानिए कैसे?

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कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी स्कैन एक ऐसी वैज्ञानिक विधि है जिससे हमें शरीर के अंदरूनी हिस्सों की डिटेल में तस्वीरें मिल जाती हैं। बता दें कि पिछले साल इस मेडिकल इमेजिंग तकनीक ने कुछ ऐसा खुलासा किया जिससे इतिहासकार और शोधकर्ता हैरान रह गए।

आपको यह बात जानकर हैरानी होगी, दरअसल सीटी स्कैन से पता चला कि बुद्ध की 1,000 साल पुरानी प्रतिमा के अंदर एक बौद्ध भिक्षु का मम्मी मिला। दरअसल इस मामले का खुलासा तब हुआ जब इस प्राचीन बुद्ध प्रतिमा को मरम्मत के लिए नीदरलैंड के ड्रेंट्स संग्रहालय में भेजा गया था।

दोस्तों, हम सभी सीटी स्कैन शब्द से भलीभांति पारिचि​त हैं। बता दें कि सीटी स्कैन का मतलब होता है-कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी स्कैन। यह एक ऐसी वैज्ञानिक विधि है जिससे हमें शरीर के अंदरूनी हिस्सों की डिटेल में तस्वीरें मिल जाती हैं। बता दें कि पिछले साल इस मेडिकल इमेजिंग तकनीक ने कुछ ऐसा खुलासा किया जिससे इतिहासकार और शोधकर्ता हैरान रह गए।

आपको यह जानकर हैरानी होगी, दरअसल सीटी स्कैन से पता चला कि बुद्ध की 1,000 साल पुरानी प्रतिमा के अंदर एक बौद्ध भिक्षु का मम्मी मिला। दरअसल इस मामले का खुलासा तब हुआ जब इस प्राचीन बुद्ध प्रतिमा को मरम्मत के लिए नीदरलैंड के ड्रेंट्स संग्रहालय में भेजा गया था।

1000 साल पुरानी इस बुद्ध प्रतिमा का सीटी स्कैन कराने पर इसके अंदर मानव के अवशेष प्राप्त हुए। शोधकर्ताओं ने अंततः पाया कि बौद्ध भिक्षु के अंगों को हटा दिया गया था और उनकी जगह कागज के स्क्रॉल की एक श्रृंखला के साथ बदल दिया गया था, जिन पर प्राचीन चीनी शिलालेख थे। 

सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक नीदरलैंड के ड्रेंट्स म्यूजियम के एक पुरातत्व क्यूरेटर विन्सेंट वैन विल्स्टरन ने कहा कि, “हमने सोचा कि यह फेफड़े के ऊतक होंगे, लेकिन बजाय इसके हमें चीनी अक्षरों से ढके कागज के छोटे-छोटे टुकड़े मिले।”

शोधकर्ताओं का मानना है कि प्रतिमा में चीनी मेडिटेशन स्कूल के सदस्य लियूक्वान नाम के बौद्ध गुरु का शरीर है, जिनकी मृत्यु लगभग 1100 ई.पू. हुआ था। हांलाकि विश्लेषण से बौद्ध प्रतिमा और ममी के विषय में कई दिलचस्प जानकारियां सामने आईं हैं। शोधकर्ता इस बात से ज्यादा चकित थे कि बौद्ध गुरू के अवशेषों को प्रतिमा के अंदर क्यों रखा गया था?

ड्रेंट्स संग्रहालय के कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि संभव है लिउक्वान भिक्षु ने खुद को ‘ लीविंग बुद्धा ‘ में बदलने के प्रयास में मूर्ति के भीतर खुद को ममीकृत किया हो। इस संबंध में इनका कहना है कि हो सकता है कि भिक्षु ने मूर्ति के अंदर पैक होने के बाद सांस लेने के लिए बांस की नली का इस्तेमाल किया हो। इतना ही नहीं, हो सकता है भिक्षु ने शरीर में मौजूद बसा और नमी को कम करने के लिए नट और जामुन को आहार के रूप में लिया हो क्योंकि इससे भूख कम लगती है।

ड्रेंट्स म्यूजियम के पुरातत्व क्यूरेटर विल्स्टरन कहना है कि ऐसा हो सकता है कि शुरू में चीन के एक बौद्ध मंदिर में इस ममी की पूजा की गई, इसके बाद 14वीं शताब्दी में इसे एक अच्छी मूर्ति में तब्दील करने की कोशिश की गई।  

फिलहाल प्रतिमा के अंदर मिले अवशेषों का डीएनए विश्लेषण अभी भी प्रतीक्षित है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इससे उन्हें ममी के पैतृक इतिहास की जानकारी मिलेगी।

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