काशी का 500 साल पुराना रत्नेश्वर महादेव मंदिर जहां नहीं होती पूजा-अर्चना, जानिए क्यों?

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आज हम आपको एक ऐसे अतिप्राचीन शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो तकरीबन 500 साल पुराना है। हैरानी की बात यह है कि इस शिव मंदिर में स्वयं भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना नहीं की जाती है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर शिव की नगरी में मौजूद इस अति प्राचीन मंदिर में महादेव की जयकारा क्यों नहीं गूंजता है। देवाधिदेव का यह अद्भुत मंदिर अपने आप में एक साथ कई रहस्य समाहित किए हुए है। रत्नेश्वर महादेव मंदिर की सबसे पहली खासियत यह है कि यह मंदिर अपने अक्ष पर पीसा की मीनार से भी पांच डिग्री ज्यादा झुका हुआ है। दूसरी विशेषता यह है कि घाट के नीच निर्मित होने के चलते यह मंदिर लगभग 8 महीने तक गंगाजल से आधा डूबा हुआ रहता है। रत्नेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी सबसे हैरान कर देने वाली खासियत यह है कि यहां प्रतिदिन तो छोड़ दीजिए, सावन के महीने में भी ना ही महादेव की पूजा-अर्चना होती है और ना ही महादेव की जयकारे लगते हैं।

महादेव की नगरी काशी को हम सभी वाराणसी अथवा बनारस के नाम से भी जानते हैं। यह किसी को बताने की जरूरत नहीं कि काशी के कण-कण में शिव विराजमान हैं। काशी की प्रत्येक गलियों से लेकर चौराहों तक पर देवाधिदेव महादेव के छोटे-बड़े मंदिर आपको अवश्य दिख जाएंगे। इस स्टोरी में आज हम आपको एक ऐसे अतिप्राचीन शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो तकरीबन 500 साल पुराना है। हैरानी की बात यह है कि इस शिव मंदिर में स्वयं भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना नहीं की जाती है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर शिव की नगरी में मौजूद इस अति प्राचीन मंदिर में महादेव का जयकारा क्यों नहीं गूंजता है।

मंदिर से जुड़े तीन प्रमुख रहस्य

दोस्तों, आपको जानकारी के लिए बता दें कि काशी के मणिकर्णिका घाट के पास ही स्थित दत्तात्रेय घाट पर मौजूद यह मंदिर रत्नेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है। देवाधिदेव का यह अद्भुत मंदिर अपने आप में एक साथ कई रहस्य समाहित किए हुए है। रत्नेश्वर महादेव मंदिर की सबसे पहली खासियत यह है कि यह मंदिर अपने अक्ष पर पीसा की मीनार से भी पांच डिग्री ज्यादा झुका हुआ है। दूसरी विशेषता यह है कि घाट के नीचे निर्मित होने के चलते यह मंदिर लगभग 8 महीने तक गंगाजल से आधा डूबा हुआ रहता है।

रत्नेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी सबसे हैरान कर देने वाली बात यह है कि यहां प्रतिदिन तो छोड़ दीजिए, सावन के महीने में भी ना ही महादेव की पूजा-अर्चना होती है और ना ही महादेव के जयकारे लगते हैं। इस संबंध में स्थानीय लोगों का कहना है कि चूंकि यह मंदिर श्रापित है, ऐसे में यदि कोई भी शिव भक्त यदि रत्नेश्वर महादेव मंदिर में पूजा करता है अथवा शिवलिंग पर जल चढ़ाता है, उसके घर में अनिष्ट होना शुरू हो जाता है।

रत्नेश्वर महादेव से जुड़ी दन्त कथाएं

रत्नेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी पहली दन्तकथा के मुताबिक जब रानी अहिल्याबाई होल्कर काशी में शिवमंदिरों का निर्माण करवा रही थीं, उन दिनों उनकी एक दासी रत्नाबाई ने भी एक शिव मंदिर के निर्माण के लिए उनसे पैसे उधार मांगे। अहिल्याबाई ने शिवमंदिर निर्माण के लिए अपनी दासी रत्त्ना को पैसे तो अवश्य दिए लेकिन कहा कि मंदिर को स्वयं के नाम से नहीं जोड़ना है। बावजूद इसके दासी ने शिव मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव रख दिया। इस बात से ​अहिल्याबाई बहुत ज्यादा नाराज हुईं और उन्होंने दासी को श्राप दिया कि आज से कोई भी इस मंदिर में पूजा-अर्चना नहीं करेगा। कहते हैं तभी से यह परम्परा जारी है।

दूसरी दन्तकथा के मुताबिक काशी के राजा से एक संत ने इस शिव मंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी मांगी। लेकिन राजा ने उस संत को मंदिर की जिम्मेदारी देने से स्पष्ट इन्कार कर दिया। ऐसे में राजा की इस बात से संत अत्यंत क्रोधित हो गए और श्राप देते हुए कहा कि आज से यह मंदिर कभी भी पूजा-अर्चना के योग्य नहीं रहेगा।

रत्नेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी एक और दन्तकथा लोगों के बीच प्रचलित है। 15वीं अथवा 16वीं शताब्दी के दौरान कोई राजा सपरिवार काशी प्रवास पर आया था। इस दौरान उसके साथ सेवक-सेविकाएं भी आए हुए थे। इस दौरान एक सेवक अपनी मां को भी बनारस लेकर आया था। ऐसा कहा जाता है कि उस सेवक की मां जैसे ही मंदिर का दर्शन करके बाहर निकली, यह मंदिर एक तरफ जमीन में धंस गया। कहते हैं सेवकी की मां का नाम ​रत्ना था, तबसे यह मंदिर रत्नेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

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