कागज नहीं मिला तो इस कवि नेसिगरेट के डिब्बे पर ही लिखदिए – “ऐ मेरे वतन के लोगों… 

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दोस्तों, देशभक्ति के कई ऐसे गाने हैं जो लोकप्रिय होने के साथ-साथ अमर हो चुके हैं। इन लोकप्रिय गानों को स्वतंत्रता दिवस या फिर किसी बड़े राष्ट्रीय समारोहों में बजते हुए आसानी से सुना जा सकता है। इन्हीं लोकप्रिय गानों में एक देशभक्ति गीत है- ‘ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी…।’  जी हां, यह मशहूर देशभक्ति गीत कवि प्रदीप ने लिखा था। 

भारत रत्न लता मंगेशकर ने इस गीत को गाकर इसे हमेशा-हमेशा के लिए अमर कर दिया। इस गीत में 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान मारे गए सैनिकों को याद किया गया है। लता मंगेशकर ने इस गीत को पहली बार 27 जनवरी 1963 को नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में गाया था। उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी कार्यक्रम में मौजूद थे। जब जवाहरलाल नेहरू ने लता मंगेशकर की आवाज़ में “ऐ मेरे वतन के लोगों” सुना तो वे अपने आंसू नहीं रोक पाए थे।

इस कंठप्रिय और लोकप्रिय देशभक्ति गीत को लेकर एक किस्सा अक्सर सुनने को मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि कहीं जा रहें लेखक कवि प्रदीप को अचानक इस गीत के बोल याद आए, लेकिन कागज पेन नहीं होने के कारण अपने बगल के किसी राहगीर से पेन मांगा और अपने सिगरेट का डिब्बा फाड़कर उलट दिया और उसी पर इस लोकप्रिय गाने के बोल लिखने लगे। यहीं से इस गाने की शुरूआत हुई।

आपको बता दें कि 6 फरवरी 1915 में मध्य प्रदेश के उज्जैन के बड़नगर में एक बालक का जन्‍म हुआ जिसे नाम मिला रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी। घर में रामचंद्र को रामू कहा जाता था। इनके बड़े भाई कृष्‍ण वल्‍लभ द्विवेदी अनुवादक, लेखक, कवि थे। जाहिर सी बात है, बड़े भाई गद्य के मनीषी थे तो छोटे भाई रामचंद्र ने काव्‍य को चुना। इसके बाद रामचंद्र द्विवेदी ने ‘प्रदीप’ के नाम से लेखन शुरू किया और अपने शुरुआती लेखन से ही श्रोताओं को मंत्रमुग्‍ध कर दिया। कवि प्रदीप ने 15-16 बरस की उम्र में ही स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। ऐसे में उन्होंने अंग्रेजों की लाठियां भी खाईं। महीनों अस्पताल में भर्ती रहे। कवि प्रदीप के जीवन में यहीं से देशभक्ति के गीतों का लेखन शुरू हुआ। 

1940 में रिलीज हुई फिल्म बंधन ने कवि प्रदीप को सुर्खियों में ला दिया था। दरअसल कवि प्रदीप ने इस फिल्म को एक गीत दिया था— “दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है” ने उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया। इस गाने का असर यह हुआ कि ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश तक दे दिए। इससे बचने के लिए कवि प्रदीप को भूमिगत तक होना पड़ा।

गौरतलब है कि जीवनकाल में कवि प्रदीप कई कालजयी गीतों की रचना की। उन्होंने 71 फिल्मों के लिए करीब 1700 गीत लिखे। उन्होंने फिल्म बंधन (1940) में “चल चल रे नौजवान”, फिल्म जागृति (1954) में “आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं”, “दे दी हमें आजादी बिना खडग ढाल” और फिल्म जय संतोषी मां (1975) में “यहां वहां जहां तहां मत पूछो कहां-कहां” है। आज की तारीख में भी इन सभी गानों को लोगों की जुबां पर गुनगुनाते हुए अक्सर सुना जा सकता है। 

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